मेरी डायरी के पन्ने
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कभी खुद से हारे हैं, कभी जिंदगी से हारे हैं,
कभी जीना चाहा, कभी जी कर हारे हैं ।
कभी गैरों ने सताया, कभी अपनों ने पत्थर मारे हैं,
किस किस को सजा दूँ, मेरी नज़र में तो गुनाहगार सारे हैं ।।
जिंदगी को समझ पाना आसन न था,
मगर फिर भी हम इसे, कुछ तो समझ कर हारे हैं ।
मोहब्बत की राह पर निकले थे मंजिल को पाने,
बाद में पता चला इस राह पर तो सभी हारे हैं ।
रास्ता बदल लिया होता तो मुमकिन है नतीजा बदलता,
पर कमबख्त हम तो हर बाज़ी सिक्के उछाल कर हारे हैं ।
एक जीत मिल जाती तो ख़ुशी मना भी लेते,
कुछ बाज़ी हम हर गए, कुछ नसीब से हारे हैं ।।
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